08 जुलाई, 2025

अधूरा अभियान - -

ऐनक की खोज में नज़र खो आए हम,
बंजर ज़मीन थी या खोखले बीज,
मुद्दतों से तकते रहे कोई अंकुर
तो उभरे सुबह की नरम
धूप में, उम्मीद का
पसारा ले कर
न जाने क्या
बो आए
हम,
ऐनक की खोज में नज़र खो आए हम ।
निरुत्तर थे सभी दर्शक इंद्रप्रस्थ वाले,
उन्मुक्त केश उड़ते रहे हवाओं
में रक्त स्नान असमाप्त
रहा आदिम युग से
आज तक, वही
अभिशापित
अट्टहास,
वही
हिंस्र ख़ामोशी, हर बार रुदाली बन रो
आए हम, ऐनक की खोज में
नज़र खो आए हम ।
निकल ही न पाए
चार पैशाचिक
मुहर के
बाहर,
बस खेलते रहे वर्ण परिचय का चौसर,
कहने को कर आए समस्त तीर्थ
दर्शन, ये और बात है कि
अंतर दाग़ न धो पाए
हम, ऐनक की
खोज में
नज़र
खो आए हम ।
- - शांतनु सान्याल


2 टिप्‍पणियां:

  1. सच ऐनक की। खोज में नजर खो आए हम

    जवाब देंहटाएं

  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 9 जुलाई 2025को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past