ए'तराफ़ कर न सके,
गहराइयों तक हैं धुंध दिल अपना साफ़ कर न सके,
दोहरे म'यार की सियासत है मीर ए कारवां के अंदर,
फिर भी वो बेदार ज़मीर को मेरे ख़िलाफ़ कर न सके,
दर्दे मुहोब्बत अपनी जगह ज़िंदगी का सच एक तरफ़,
जीने की सज़ा ले कर ख़ुद को कभी माफ़ कर न सके,
- - शांतनु सान्याल