क्रूसबिद्ध भावनाओं का पुनर्जन्म सम्भव नहीं, एक दीर्घ प्रतीक्षा के बाद निशि पुष्प झर
जाते हैं, मील के पत्थर अपनी
जगह ख़ामोश खड़े रहते
हैं लोग अनदेखे से
अपने गंतव्य
की ओर
गुज़र
जाते हैं । संधि विच्छेद के बाद दर्पण शून्यता
बटोरता रहा, फ़र्श में बिखरे पड़े रहते हैं
अर्थहीन शब्दों के वर्णमाला, जीवन
का व्याकरण हर हाल में समास
बद्ध होना चाहता है, अदृश्य
तृण अपने आप प्रथम
वृष्टि में बंजर भूमि
से उभर आते
हैं, एक
दीर्घ
प्रतीक्षा के बाद निशि पुष्प झर जाते हैं । कोई
भी नहीं होता नेपथ्य में, फिर भी परिचित
ध्वनियां पीछा नहीं छोड़ती, अजीब
सा है मायावी काठ का गोलाकार
हिंडोला, फेंकता है ऊंचाइयों
से रेशमी जाल, धीरे धीरे
धूसर आकाश के
कोने, असंख्य
तारों से
भर
जाते हैं, एक दीर्घ प्रतीक्षा के बाद निशि पुष्प झर
जाते हैं ।
- - शांतनु सान्याल