29 जुलाई, 2022

सभी थे ख़ामोश - -

हज़ार तिर्यक रेखाओं के मध्य बनता है
एक घोंसला, अथक उड़ानों के बाद
कहीं जा कर कुछ श्वेत वृत्तों
में छुपे रहते हैं पीत -
वर्णी सपनों के
कण,
बारम्बार बिखरने के बाद भी जीवन नहीं
खोता है अपना हौसला, हज़ार तिर्यक
रेखाओं के मध्य बनता है एक
घोंसला । न जाने कितने
सांप सीढ़ियों से
उतर कर भी
हम नहीं
भूलते
आरोहण, ज़रूरी नहीं हासिल हों जीवन
में मनचाही वस्तु, अंतरतम का
संतोष ही होता है सच्चा
आभूषण, न जाने
किसे करना
चाहता है
परास्त,
झूल
रहा है तू अपने ही अंदर, अट्टहास कर - -
रहा है समय का झूला, अंतिम
प्रहर में थे सब चुप, क्या
मेरा ईश और क्या
तेरा मौला,
हज़ार
तिर्यक
रेखाओं के मध्य बनता है एक घोंसला ।
* *
- - शांतनु सान्याल
 
 

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