15 जुलाई, 2022

पुनरागमन - -

हर शख़्स की है अपनी कल्पना, अपनी ही
भविष्यवाणी, जल प्रलय हो या हिम -
युग की वापसी, या भस्मीभूत
होती हुई ये ख़ूबसूरत
पृथ्वी, शून्य से
शून्य तक
फिर भी
रहती है कहीं न कहीं, आबाद ये यायावर
ज़िन्दगी ! सभी कुछ बिखर जाएंगे
एक दिन, सरल कहाँ, रेत के
घरौंदों को पागल लहरों
से बचाना, बिखरे
पड़े रहेंगे बस
कुछ सीप
शंख
के खोल, कदाचित मिल जाए तुम्हें कोई
दिव्य मोती, न भूलना, इस किनारे
पर पुनः आना, पाओगे हर
हाल में कहीं न कहीं,
अदृश्य प्रणय की
मौजूदगी,     
शून्य
से शून्य तक फिर भी रहती है कहीं न -
कहीं, आबाद ये यायावर ज़िन्दगी !
* *
- - शांतनु सान्याल   

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-07-2022) को चर्चा मंच     "दिल बहकने लगा आज ज़ज़्बात में"  (चर्चा अंक-4492)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  2. कदाचित मिल जाए तुम्हें कोई
    दिव्य मोती, न भूलना, इस किनारे
    पर पुनः आना, पाओगे हर
    हाल में कहीं न कहीं,
    अदृश्य प्रणय की
    मौजूदगी,
    बहुत सटीक...
    सुन्दर सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  3. शून्य ही है सब इस ब्रह्मांड में ,सुंदर रचना

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