08 जुलाई, 2022

आज़ादी ए फ़रेब - -

न कहना किसी से किस्सा ए दग़ाबाज़ी,
कहीं लोग दोस्ती करना न छोड़ दें,
वो महज तस्सवुर है या हक़ीक़ी,
मेरा ख़ुदा या तेरा ईश्वर, न
खोल राज़ ए अक़ीदत,
कि राहे यक़ीं पे
लोग चलना
न छोड़
दें,
कहीं लोग दोस्ती करना न छोड़ दें । वो
सभी क़ाबिल ए फ़ख़्र, महल ओ
क़िले ढह गए, ख़ामोश आह
के आगे, कोई दिव्य
किताब की मर्ज़ी
नहीं चलती,
सैलाब

वक़्त के साथ न जाने कितने शहंशाह
बह गए, न बना कांच के सराय
धुंध भरी वादियों में, कि
तेरे अपने भी तेरे
साथ ठहरना
न छोड़
दें,
कहीं लोग दोस्ती करना न छोड़ दें - -
* *
- - शांतनु सान्याल

 
 

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-07-2022) को चर्चा मंच     "ग़ज़ल लिखने के सलीके"   (चर्चा-अंक 4485)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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  2. सैलाब

    वक़्त के साथ न जाने कितने शहंशाह
    बह गए, न बना कांच के सराय
    धुंध भरी वादियों में, कि
    तेरे अपने भी तेरे
    साथ ठहरना
    न छोड़
    दें,...वाह!हमेशा की तरह लाजवाब सृजन।

    जवाब देंहटाएं

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