09 अप्रैल, 2022

टूटे हुए मेहराब - -

दूर बहुत दूर तक फैले हुए हैं यादों के
खण्डहर, न जाने क्या चाहते हैं
मुझसे, वो टूटे हुए मेहराबों
से झांकते, अर्ध स्मित
चेहरे, प्राचीन
मठ का
कोई
एकाकी सन्यासी है गोधूलि आकाश,
चाहता है शायद तोड़ना धरती
से अपना मोहपाश, सूखे
पत्ते की है अपनी ही
अलग कहानी,
कोई किसी
के लिए
आख़िर क्यूँ कर ठहरे, वो टूटे हुए -
मेहराबों से झांकते, अर्ध स्मित
चेहरे। वो सभी चेहरों में
ढूंढता हूँ मैं, सुबह
की मुलायम
धूप, एक
अनुबंध
जो
कदाचित बंधा था उन्मुक्त ख़ुशी के
लिए, सुबह से पहले कोई द्वार
पर लगा गया शून्यता का
कुलूप, कहाँ जाएं, किस
से मिलें, दो बात
करें हिय की,
ये शहर
है बड़ा
मायावी, यूँ तो शोरगुल है हर तरफ -
लेकिन एहसास हैं सभी गूंगे
और बहरे, वो टूटे हुए
मेहराबों से झांकते,
अर्ध स्मित
चेहरे।
* *
- - शांतनु सान्याल

10 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-4-22) को "शुभ सुमंगल वितान दे..." (चर्चा अंक-4396) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

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  2. यादों के खण्डहर बहुत कुछ कहते हैं। सुन्दर प्रतीक और बिम्ब विधान से सजी भावपूर्ण प्रस्तुति शान्तनु जी।यादों को तरतीब से सजानाकोई आप से सीखे।हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई स्वीकार करें।🙏🙏🌺🌺

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  3. ये शहर
    है बड़ा
    मायावी, यूँ तो शोरगुल है हर तरफ -
    लेकिन एहसास हैं सभी गूंगे
    और बहरे, वो टूटे हुए
    मेहराबों से झांकते,
    अर्ध स्मित
    चेहरे।

    जीवन का शानदार पिरामिडीय बिम्ब
    साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. सूखे
    पत्ते की है अपनी ही
    अलग कहानी,
    कोई किसी
    के लिए
    आख़िर क्यूँ कर ठहरे, वो टूटे हुए -
    मेहराबों से झांकते, अर्ध स्मित
    चेहरे... वाह!बहुत सुंदर कहा सर।
    सादर

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