दूर बहुत दूर तक फैले हुए हैं यादों के
खण्डहर, न जाने क्या चाहते हैं
मुझसे, वो टूटे हुए मेहराबों
से झांकते, अर्ध स्मित
चेहरे, प्राचीन
मठ का
कोई
एकाकी सन्यासी है गोधूलि आकाश,
चाहता है शायद तोड़ना धरती
से अपना मोहपाश, सूखे
पत्ते की है अपनी ही
अलग कहानी,
कोई किसी
के लिए
आख़िर क्यूँ कर ठहरे, वो टूटे हुए -
मेहराबों से झांकते, अर्ध स्मित
चेहरे। वो सभी चेहरों में
ढूंढता हूँ मैं, सुबह
की मुलायम
धूप, एक
अनुबंध
जो
कदाचित बंधा था उन्मुक्त ख़ुशी के
लिए, सुबह से पहले कोई द्वार
पर लगा गया शून्यता का
कुलूप, कहाँ जाएं, किस
से मिलें, दो बात
करें हिय की,
ये शहर
है बड़ा
मायावी, यूँ तो शोरगुल है हर तरफ -
लेकिन एहसास हैं सभी गूंगे
और बहरे, वो टूटे हुए
मेहराबों से झांकते,
अर्ध स्मित
चेहरे।
* *
- - शांतनु सान्याल
09 अप्रैल, 2022
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-4-22) को "शुभ सुमंगल वितान दे..." (चर्चा अंक-4396) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
------------
कामिनी सिन्हा
ह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंयादों के खण्डहर बहुत कुछ कहते हैं। सुन्दर प्रतीक और बिम्ब विधान से सजी भावपूर्ण प्रस्तुति शान्तनु जी।यादों को तरतीब से सजानाकोई आप से सीखे।हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई स्वीकार करें।🙏🙏🌺🌺
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंये शहर
जवाब देंहटाएंहै बड़ा
मायावी, यूँ तो शोरगुल है हर तरफ -
लेकिन एहसास हैं सभी गूंगे
और बहरे, वो टूटे हुए
मेहराबों से झांकते,
अर्ध स्मित
चेहरे।
जीवन का शानदार पिरामिडीय बिम्ब
साधुवाद
ह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंसूखे
जवाब देंहटाएंपत्ते की है अपनी ही
अलग कहानी,
कोई किसी
के लिए
आख़िर क्यूँ कर ठहरे, वो टूटे हुए -
मेहराबों से झांकते, अर्ध स्मित
चेहरे... वाह!बहुत सुंदर कहा सर।
सादर
ह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएं