न खींच कोई अदृश्य रेखा जीवन वृत्त
के आस पास, मुस्कुराने की कोई
समय - सीमा नहीं होती, कैसे
समझाएं तुम्हें कि ये
हासिल पल है
बेहद
क़ीमती हार, ज़रा सी ग़फ़लत में बिखर
जाएंगे, आईना रह जाएगा स्तब्ध,
निःशब्द होगी सिंगारदानी,
हम खोजते रह जाएंगे
गुमशुदा मोतियों
के ठिकाने,
किसे
मालूम इस धुंध की घाटी में हम सभी -
किधर जाएंगे, ये हासिल पल है
बेहद क़ीमती हार, ज़रा
सी ग़फ़लत में
बिखर
जाएंगे। वर्षावन की ये जिजीविषा नहीं
थमती चाहे कितने ही ऊपर हो
एक बूंद सूर्य किरण, हर
हाल में ज़िन्दगी को
करनी है अंतहीन
यात्रा, पर्ण -
अंचल
की है अपनी अलग ही नियति, क्या -
फ़र्क़ पड़ता है मुझे मिला हो
केवल भीगा स्पर्श, और
तुम्हें असीम मात्रा,
तिलिस्म
छुअन
की
है अपनी अलग तासीर, देखना एक
दिन हम भी निखर जाएंगे,
ये हासिल पल है बेहद
क़ीमती हार, ज़रा
सी ग़फ़लत
में बिखर
जाएंगे।
* *
- - शांतनु सान्याल
01 अप्रैल, 2022
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