14 अप्रैल, 2022

यथावत हैं सभी रास्ते - -

सभी आवरण देता है उतार, निःशब्द ये
गाढ़ अंधकार, चंद्र विहीन आकाश
में है बदस्तूर सितारों का
उत्थान - पतन, शूल
सेज पर होता है
तब अक्सर
एकाकी
ये जीवन, झुरमुटों से झांकते हैं कुछ -
आत्मीय स्वजन, उजालों तक हैं
सभी सिमित ये अंतरंग
चेहरे, अंधेरे में किसी
को नहीं किसी
से कोई भी
सरोकार,
सभी आवरण देता है उतार, निःशब्द ये
गाढ़ अंधकार। मायाविनी इस रात
की गहराई में ढूंढता हूँ मैं अपनी
ही गुमशुदा छाया, अंतिम
प्रहर में मिलने की
प्रतिश्रुति थी
बहुत ही
झूठी,
क्षितिज पर ठहरा रहा देर तक, लेकिन
मुझसे मिलने वहां कोई नहीं आया,
वही दूर तक फैली हुई है धुंध
की चादर, वही रास्ते
पेंचदार, सभी
आवरण
देता है
उतार, निःशब्द ये गाढ़ अंधकार - - -
* *
- - शांतनु सान्याल
 
 

 

10 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१५-०४ -२०२२ ) को
    'तुम्हें छू कर, गीतों का अंकुर फिर उगाना है'(चर्चा अंक -४४०१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. बेहतरीन अभिव्यक्ति, सादर नमस्कार आपको 🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी और सुंदर कविता

    जवाब देंहटाएं

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