उतरती है चाँदनी धीरे - धीरे, मुंडेरों से
हो कर, झूलते अहातों तक, फिर भी
मिलती नहीं, रूह ए मकां को
तस्कीं, इक रेशमी अंधेरा
सा घिरा रहता है दिल
की गहराइयों तक,
हम खोजते हैं
ख़ुद को
अपने ही बिम्ब के उस पार, जबकि ये
वजूद रहता है मौजूद, यहीं पे कहीं,
फिर भी मिलती नहीं, रूह ए
मकां को तस्कीं। हर सिम्त
हैं बिखरे हुए अनगिनत
चेहरे, उम्र गुज़र
जाती है बस
असल
चेहरे की तलाश में, इक लकीर की तरह
खींची हुई है नियति की डोर, दो
स्तंभों के बीच, गुज़रती है
जिस पर ये ज़िन्दगी
लिए सीने में
जीने की
आस,
हज़ार बार टूटे, हज़ार बार जुड़ के उभरे,
बिखरते नहीं फिर भी मुहोब्बत के
एहसास, हर सुबह हम तुमसे
मिलेंगे वहीं ,जहाँ मिलते
हैं रोज़ ये आसमान
और बेक़रार सी
ज़मीं, फिर
भी
मिलती नहीं, रूह ए मकां को तस्कीं । - -
* *
- - शांतनु सान्याल
25 अप्रैल, 2022
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
ज़िंदगी इसी तलाश का दूसरा नाम है
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 27 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्
ह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंवाह.....बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंह्रदय तल से आभार नमन सह।
जवाब देंहटाएंहज़ार बार टूटे, हज़ार बार जुड़ के उभरे,
जवाब देंहटाएंबिखरते नहीं फिर भी मुहोब्बत के
एहसास,sunder bhav !!
ह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएं