22 अप्रैल, 2022

लापता सूत्र - -

दिन के उजाले में नहीं डूबते अंधेरों के
चिराग़, परछाइयों के हैं सब खेल
जो दिखता है खुली निगाह से
वो नहीं मुक्कमल जहां,
पृथ्वी के उस पार
भी है जीवन
का एक
भाग,
दिन के उजाले में नहीं डूबते अंधेरों के
चिराग़ । राज पथ के दोनों तरफ हैं
दो अलग दुनिया, जोड़ता है
जिन्हें अदृश्य मुहोब्बतों
का पुल, फिर भी
दूरियों को
पाटना
नहीं
आसां, ढूंढती हैं दूर तक किसे तेरी ये -
प्यासी निगाहें, जो खो गए धुंधले
क्षितिज के पार, नहीं मिलता
उम्र भर उनका निशां,
जो छुपा रहा मेरे
अंतरतम में
उस का
कोई न दे पाया सठिक सुराग़, दिन के
उजाले में नहीं डूबते अंधेरों
के चिराग़ ।
* *
- - शांतनु सान्याल

6 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२३-०४ -२०२२ ) को
    'पृथ्वी दिवस'(चर्चा अंक-४४०९)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. जो दिखता है खुली निगाह से
    वो नहीं मुक्कमल जहां,
    वाह!!!
    बहुत खूब...
    लाजवाब।

    जवाब देंहटाएं

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