28 अप्रैल, 2022

निःशब्द कथोपकथन - -

वो पल थे अविस्मरणीय, जो खुले आकाश
के नीचे बिखर गए, अवाक थे तुम
और मैं भी निःशब्द, सिर्फ़
चल रहे थे अंतरिक्ष
में सितारों के
जुलूस !
तुमने कुछ भी न कहा, लेकिन रूह तक जा
पहुंची तुम्हारी वो अनकही बातें, उन
पलों में हम ने जाना जीवन का
सौंदर्य, उन रहस्यमयी
क्षणों में हम भूल
गए दुनिया
की सभी
घातें,
सिर्फ़ कुछ याद रहा तो वो था परस्पर का
एक ख़ामोश, हमआहंगी वो ख़ुलूस,
अवाक थे तुम और मैं भी
निःशब्द, सिर्फ़ चल
रहे थे अंतरिक्ष में
सितारों के
जुलूस !
इक उम्र से कहीं ज़्यादा हम जी चुके हैं -
उन ख़ूबसूरत लम्हों के दरमियां,
क्या पाया हम ने और क्या
कुछ खो दिया उनका
हिसाब कौन करे,
चाहे बना लो
जितने भी
अमूल्य शीशमहल, पलक झपकते ही
हैं सभी ताश के आसमां, सिर्फ़
रहते हैं सदा रौशन दिलों
में मुहोब्बत के
फ़ानूस,
अवाक थे तुम और मैं भी निःशब्द, सिर्फ़
चल रहे थे अंतरिक्ष में
सितारों के
जुलूस !
* *
- - शांतनु सान्याल  

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-04-2022) को चर्चा मंच       "दिनकर उगल  रहा है आग"  (चर्चा अंक-4415)       पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   
     --

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