06 अप्रैल, 2022

पूर्व लिखित तहरीर - -

बेदाग़ यहाँ कोई नहीं, चश्म ए अंदाज़ है
अपना अपना, जो हथेली पर रुका
कुछ पल के लिए वो एहसास
ए बूंद है मुहोब्बत, जो
छलक गया मेरी
पलकों से हो
कर, वो
था
सुबह का कोई नाज़ुक सा सपना, बेदाग़
यहाँ कोई नहीं, चश्म ए अंदाज़ है
अपना अपना। दिगंत पर आ
कर मैं ढूंढता हूँ शब ए
गुज़िश्ता का निशां,
कौन, किस
सिम्त
जा
मुड़ा कहना है बहुत मुश्किल, सुबह है
वही ताज़गी भरी, वही उन्मुक्त
आसमां, दरअसल पूर्व -
लिखित होते हैं
मिलना
और
बिछुड़ना, बेदाग़ यहाँ कोई नहीं, चश्म
ए अंदाज़ है अपना अपना।
* *
- - शांतनु सान्याल

 
 

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