बहुत कुछ कहने के बाद भी, बहुत
कुछ कहने को रहता है बाक़ी,
ये और बात है कि शब्दों
के ख़ाली स्थान भर
जाते हैं दीर्घ -
निःश्वास !
बहुत दूर जाने के बाद भी बहुत -
कुछ अनदेखा रह जाता
है, मुद्दतों एक ही
शहर में रह
कर भी
हम,
देख नहीं पाते अपने ही घर के
आस पास, शब्दों के ख़ाली
स्थान भर जाते हैं दीर्घ -
निःश्वास ! बहुत
क़रीब आने
के बाद
भी
दिलों की मुलाक़ात रहती है - -
अधूरी, सब कुछ छू कर भी
अनछुआ ही रहता
अक्स हमारा,
ख़ुद से
मिलने का हमें मिलता नहीं उम्र
भर इक पल का अवकाश,
शब्दों के ख़ाली स्थान
भर जाते हैं दीर्घ -
निःश्वास !
बहुत
कुछ सोचने के बाद रुक जाते हैं
हम अकस्मात् किसी एक
बिंदु पर, और छोड़
देते है और
अधिक
सोचना, बस उसी क्षण से ज़िन्दगी
ओढ़ लेती है कबीर वाला सन्यास,
शब्दों के ख़ाली स्थान
भर जाते हैं दीर्घ -
निःश्वास !
* *
- - शांतनु सान्याल
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-10-21) को "पढ़ गीता के श्लोक"(चर्चा अंक 4213) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
सुंदर, सार्थक रचना !........
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है।