किसी एक चन्द्रविहीन रात में, देखा था
उसे जनशून्य रेलवे प्लेटफॉर्म में,
आँखों में लिए शताब्दियों
का अंधकार, मायावी
आकाश के पटल
पर सुदूर
तारे
खेल रहे थे सांप - सीढ़ी, ज़िन्दगी देख
रही थी, बहुत दूर जा कर पटरियों
का अचानक शून्य में खो
जाना, जिसके बाद
नहीं है कोई भी
पांथ शाला,
जहाँ
नीचे है ऊसर ज़मीं का बिस्तर, और
ऊपर देह से लिपटा हुआ
जराजीर्ण उम्र का
दुशाला, एक
घने कोहरे
में डूबी
हुई
अरण्य घाटियां, दूर दूर तक फैले हुए
है रहस्य के अंबार, आँखों में लिए
शताब्दियों का अंधकार। रात
को गुज़रना है अपनी ही
लय में, अंकों का
हिसाब वक़्त
को नहीं
मालूम,
वो
अविरत बहता जाता है अपनी ही धुन
में अविराम, सुख - दुःख के कांटें
कहाँ होते हैं एक जगह कभी
स्थिर, एक दूजे से वो
टकराते हैं बार -
बार, आँखों
में लिए
शताब्दियों का अंधकार, मृगतृष्णा की
तरह सुबह खड़ा होता है क्षितिज
के उस पार - -
* *
- - शांतनु सान्याल
10 अक्तूबर, 2021
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सुख - दुःख के कांटें
जवाब देंहटाएंकहाँ होते हैं एक जगह कभी
स्थिर, एक दूजे से वो
टकराते हैं बार -
बार, आँखों
में लिए
शताब्दियों का अंधकार, मृगतृष्णा की
तरह सुबह खड़ा होता है क्षितिज
के उस पार - -
सुंदर, सटीक अभिव्यक्ति ।नवरात्रि पर्व की तरह हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐
अविरत बहता जाता है अपनी ही धुन
जवाब देंहटाएंमें अविराम, सुख - दुःख के कांटें
कहाँ होते हैं एक जगह कभी
स्थिर, एक दूजे से वो
टकराते हैं बार -
बार, आँखों
में लिए
बहुत ही प्रभावी सृजन
चर्चा की बेहतरीन प्रस्तुति| Visit our Hindi Blog
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