वो सभी हो चुके हैं किंवदंती जिनका
बखान कर के आज तुम ख़ुद को,
महा मानव कहते हो, जातक
कथाओं में कहीं, तुम
आज भी हो वहीं
पर खड़े, जहाँ
था कभी
छद्म
रुपी सियार, ओढ़े हुए व्याघ्र छाल !
पहलू बदल बदल कर छलते हो,
वो सभी हो चुके हैं किंवदंती
जिनका बखान कर
के आज तुम
ख़ुद को,
महा
मानव कहते हो। दरअसल हर युग -
में कमोबेश इसी तरह से बार
बार बदलता है इतिहास,
भीष्म जोहते हैं
ऋतुओं
का
परिवर्तन, जीवन खोजता है सिर्फ़
एकांतवास, उंगली काट कर
मीर ए कारवां की तरह
तुम शहीदों में
अपना
नाम
लिखवाने के लिए मचलते हो, वो
सभी हो चुके हैं किंवदंती
जिनका बखान कर
के आज तुम
ख़ुद को,
महा
मानव कहते हो।
* *
- - शांतनु सान्याल
26 अक्टूबर, 2021
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जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 27 अक्टूबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंसच कुछ कर दिखाने से महामानव बनते हैं न कि उनका गुणगान करके
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
ह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंजीवन खोजता है सिर्फ़
जवाब देंहटाएंएकांतवास, उंगली काट कर
मीर ए कारवां की तरह
तुम शहीदों में
अपना
नाम
लिखवाने के लिए मचलते हो... वाह!गज़ब कहा सर।
सराहनीय सृजन हमेशा की तरह।
सादर
ह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएंBeautiful Lines
जवाब देंहटाएंzeetalwara
ह्रदय तल से आभार नमन सह।
हटाएं