26 अक्तूबर, 2021

जुलूस का मशाल वाही - -

वो सभी हो चुके हैं किंवदंती जिनका
बखान कर के आज तुम ख़ुद को,
महा मानव कहते हो, जातक
कथाओं में कहीं, तुम
आज भी हो वहीं
पर खड़े, जहाँ
था कभी
छद्म
रुपी सियार, ओढ़े हुए व्याघ्र छाल !
पहलू बदल बदल कर छलते हो,
वो सभी हो चुके हैं किंवदंती
जिनका बखान कर
के आज तुम
ख़ुद को,
महा
मानव कहते हो। दरअसल हर युग -
में कमोबेश इसी तरह से बार
बार बदलता है इतिहास,
भीष्म जोहते हैं
ऋतुओं  
का
परिवर्तन, जीवन खोजता है सिर्फ़
एकांतवास, उंगली काट कर
मीर ए कारवां की तरह
तुम शहीदों में
अपना
नाम
लिखवाने के लिए मचलते हो, वो
सभी हो चुके हैं किंवदंती
जिनका बखान कर
के आज तुम
ख़ुद को,
महा
मानव कहते हो।
* *
- - शांतनु सान्याल     



 
 

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-10-2021) को चर्चा मंच         "कलम ! न तू, उनकी जय बोल"     (चर्चा अंक4229)       पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 27 अक्टूबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    !

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  3. सच कुछ कर दिखाने से महामानव बनते हैं न कि उनका गुणगान करके

    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  4. जीवन खोजता है सिर्फ़
    एकांतवास, उंगली काट कर
    मीर ए कारवां की तरह
    तुम शहीदों में
    अपना
    नाम
    लिखवाने के लिए मचलते हो... वाह!गज़ब कहा सर।
    सराहनीय सृजन हमेशा की तरह।
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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