कांच के बक्से में हैं बंद कुछ रंगीन हवाई
मिठाई, एक सर्पिल सा कच्चा रास्ता,
सुदूर कांस वन से हो कर खो
जाता है उथली नदी के
किनार, पोखरों में
झांकता सा
लगे है
नीलाकाश, चंडी मंडप में हो रही है फिर -
एक बार लिपाई पुताई, कांच के
बक्से में हैं बंद कुछ रंगीन
हवाई मिठाई। पुष्प -
गंधों की पालकी
में हो सवार
आ रहे
हैं ऋतु शरद सुकुमार, कैलाश से आ रही
हैं उमा अपने ननिहाल, मंगल ध्वनि
संग साजे श्रद्धा के द्वार, हर
तरफ है व्याप्त मन
की अंतहीन
रौशनाई,
कांच
के बक्से में हैं बंद कुछ रंगीन हवाई - -
मिठाई।
* *
- - शांतनु सान्याल
06 अक्टूबर, 2021
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