ढलती दोपहरी में नीम दरख़्त की
परछाई, तपते हुए बरामदे पर,
नाज़ुक सा इक मरहमी
एहसास रख जाए,
अजीब सी है
मुंतज़िर
पलों
की अनुभूति, उड़ चुके हैं सुदूर - -
फूलों की वादियों में, वो सभी
सप्तरंगी तितलियों के
झुण्ड, बंद पलकों
की सतह पर
तैरते हैं
कुछ
स्पर्श की बूंदें, जाते जाते हलकी सी
कोई मुस्कान मेरे ओठों के पास
रख जाए, तपते हुए बरामदे
पर, नाज़ुक सा इक
मरहमी एहसास
रख जाए।
अंतहीन
होती
है
उम्मीद की गहराई, सतह को छू कर
अंदाज़ लगाना है मुश्किल, जो
दिखता है ज़रूरी नहीं वो
असली हो, इस दौर
में क्या पीतल,
क्या सोना,
देख कर
फ़र्क़
बताना है मुश्किल, मूल्यांकन का क्या
है भरोसा, बदल जाए हर एक हाट
बाज़ार के मोड़ पर, अनछुई
सी इक ख़ालिस चमक
कोई यूँ ही मेरे
पास रख
जाए,
तपते हुए बरामदे पर, नाज़ुक सा - - -
इक मरहमी एहसास
रख जाए।
* *
- - शांतनु सान्याल
08 अक्तूबर, 2021
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०९-१०-२०२१) को
'अविरल अनुराग'(चर्चा अंक-४२१२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपको पढ़ना एक सुखद अनुभव
जवाब देंहटाएंसुंदर, सार्थक रचना !........
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है।
गहन भाव लिए सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंप्रणाम
सादर।