18 अक्तूबर, 2021

सुरभित उपहार - -

तटबंध के नीचे होते हैं न जाने कितने ही
गह्वर, काठ का सेतु कब टूट जाए,
नाव को कहाँ रहती है उसकी
ख़बर, फिर भी तुम हाथ
तो बढ़ाओ किनारे
की तरफ, कोई
न कोई तो
ज़रूर
होगा थामनेवाला, बड़ी उम्मीद से तकती
है तुम्हें ज़िन्दगी की रहगुज़र, काठ
का सेतु कब टूट जाए, नाव को
कहाँ रहती है उसकी ख़बर।
उपहार की है अपनी
ही एक नि:स्वार्थ
परिभाषा, जो
बदले में

रखे कोई भी अभिलाषा, अदृश्य सुरभि की
तरह जो बांध जाए, देह प्राण में मर्म
के धागे, वो अंतर्भाव जीवन को
परिपूर्ण कर जाए, कालकूट
की तरह, कंठ में रह
कर हो जाए अपने
आप अमर,
काठ
का सेतु कब टूट जाए, नाव को कहाँ रहती
है उसकी ख़बर।
* *
- -  शांतनु सान्याल

4 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-10-21) को "/"तुम पंखुरिया फैलाओ तो(चर्चा अंक 4222) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  2. काठ
    का सेतु कब टूट जाए, नाव को कहाँ रहती
    है उसकी ख़बर।
    गंभीर दर्शन को प्रकट करती रचना!--ब्रजेंद्रनाथ

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