कोई आहट जो सुनसान राहों से गुज़र कर, -
ख़्वाबों की सीड़ियों से हो कर, दिल
के दर पे दे जाए इक प्यार
भरा दस्तक ! उस
अनजान -
ख़ुशबू की चाहत में ज़िन्दगी, बहोत तनहा -
बहोत मुख़्तसर, बेजान सी नज़र
आई, फूल खिले और झर
भी गए, आख़री पहर,
लेकिन वो न आए,
भीगी रात
बहोत परेशां सी नज़र आई, इक ख़ामोशी -
भटकती रही मंज़िल मंज़िल, इक
धुंआ सा उठता रहा, वादी
वादी, अपनी ही -
परछाई
आज मुझे, बहोत अनजान सी नज़र आई -
* *
- शांतनु सान्याल
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