तुम भोर की मख़मली स्वप्न हो !
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art of Samir Mondal, Kolkata -India
आँख खुलते ही जो बिखर
जाए, ओस बूंदों की
तरह -
अंतःप्रेरणा हो तुम सदैव सुरभित,
अनंतकालीन रोशन कोई
नीलाभ नीहारिका,
क्या हो तुम
क्या -
नहीं, अपरिभाषित कोई दिव्य - -
अनुभूति, शब्दों में जिसे
ढाला न जा सके
वो अद्वित्य
सौन्दर्य
की कोई कविता हो तुम या कोई
आत्मलीन शतदल की हो
कोमल भीगी
पंखुडियां !
न जाने क्या हो तुम, मरू प्रांतर - -
भी करें तुम्हारी उपासना !
* *
- शांतनु सान्याल
art of Samir Mondal, Kolkata -India
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