समा वो तारों भरा, बेरहम रात ने
जाते जाते यूँ उलट दी, कि
कोई निशां ए दरार
नहीं बाक़ी,
दूर तक बिखरे हैं क़तरा ए शबनम
या मेरी आँखों से टूटे हैं कुछ
भीगे ख़्वाब की बूंदें,
सीने में अब
तलक
रुके रुके से हैं, तेरी लब से छलके -
हुए कुछ नूर ए ज़िन्दगी, या
उम्र भर तड़पने का
अज़ाब दे कोई,
सूरज !
शायद है रहनुमा तुम्हारा, यहाँ इक
अँधेरा है बेकरां मुसलसल - -
* *
- शांतनु सान्याल
समां - आकाश
अज़ाब - अभिशाप
जाते जाते यूँ उलट दी, कि
कोई निशां ए दरार
नहीं बाक़ी,
दूर तक बिखरे हैं क़तरा ए शबनम
या मेरी आँखों से टूटे हैं कुछ
भीगे ख़्वाब की बूंदें,
सीने में अब
तलक
रुके रुके से हैं, तेरी लब से छलके -
हुए कुछ नूर ए ज़िन्दगी, या
उम्र भर तड़पने का
अज़ाब दे कोई,
सूरज !
शायद है रहनुमा तुम्हारा, यहाँ इक
अँधेरा है बेकरां मुसलसल - -
* *
- शांतनु सान्याल
समां - आकाश
अज़ाब - अभिशाप