भीगने की जुस्तजू ने इंतज़ार ए शब बढ़ा दिया, बरसात की चाह ने हमें क्या से क्या बना दिया,
कभी हम से थी आबाद मुहोब्बत की बस्तियां,
वीरानगी है हर सिम्त जब से उसने भुला दिया,
कब गुज़रा सितारों का कारवां कुछ याद नहीं,
आधीरात से पहले भीगे जज़्बात ने सुला दिया,
संग कोयला से ही उभरता है ताब ए कोहिनूर,
सही वक़्त दर्पण ने अपने अक्स से मिला दिया,
बहोत फ़ख़्र था उसे अपनी ऊंची हवेलियों का,
ज़लज़ला ए वक़्त ने गिरने का दिन गिना दिया,
बरसात की चाह ने हमें क्या से क्या बना दिया ।
- - शांतनु सान्याल