दिल की गहराइयों में है जमा अगाध जलधार, रेत को हटा कर, तुम अंजुरी कभी भर न पाए,
अजस्र आँचल बिखरे पड़े हैं धरातल के ऊपर,
आसक्ति के वशीभूत ख़ुश्बू ज़मीं पे झर न पाए,
अदृश्य परिधि के अंदर गढ़ते रहे अपनी दुनिया,
ओस बन के नभ से नीचे निःशर्त बिखर न पाए,
मंदिर कलश अनछुआ रहा अभिलाष बढ़े सही,
अनेक गंतव्य फिर भी सत्य पथ से गुज़र न पाए,
अन्तःप्रवाह कुछ और था बाह्यप्रकाश झिलमिल,
पद्मपात था निर्मल पारदर्शी नेह बूँद ठहर न पाए,
नियति का रेखागणित, अपनी जगह था परिपूर्ण,
मोतियों के हैं अंबार फिर भी अंचल भर न पाए ।
- - शांतनु सान्याल
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 9 अप्रैल को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
अत्यन्त सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ❤️🌻
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