बाद ए नसीम बहे मुद्दत गुज़र गए,
by artes.sn
कहीं से आए फिर मन्नतों की
सुबह, फिर खिले ख़ुश्क
फूल, कुछ इस तरह
से मुड़ गए सभी
अब्र मर्तूब,
गोया पहचानते भी न हों बियाबां -
क़दीम, कोई भटके राह ए
गर्द आलूद, कोई वली
अहद, क्या ख़ूब
है नसीब
ए तक़सीम, उसकी नज़र में जब
हैं सभी यकसां, न जाने क्यूँ
है फिर फ़र्क ज़माने की
नज़र में इतना - -
बाद ए नसीम - सुबह की हवा
अब्र मर्तूब - सजल बादल
क़दीम - प्राचीन
वली अहद - राजा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहोत शुक्रिया - नमन सह
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