रख भी जाओ कोई ख़्वाब, सल्फ़शुदा आँखों
में इस तरह, कि सुलगते जज़्बात को
ज़रा आराम मिले, हूँ मैं अपने ही
शहर में शख्स बेरुनी, कोई
खिड़की तो खुले कहीं से,
भटकती रूह को
पल दो पल
एहतराम
मिले,
लिए फिरता हूँ सदियों से सीने में लटकाए -
तस्लीम की आरज़ू, छू लूँ कभी तो
महकती चांदनी को, कहीं से
किसी तरह इक दहलीज़
ए गाम तो मिले,
ये चाहत है
या कोई
ख़ामोश दहन, रात ढलने से क़बल जिस्म
ओ जां को मंजिल ए अंजाम मिले !
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
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सल्फ़शुदा - थके हुए
शख्स बेरुनी - विदेशी
एहतराम - इज्ज़त
तस्लीम - पहचान
गाम - क़दम
क़बल - पहले
stranger fog शख्स बेरुनी - विदेशी
एहतराम - इज्ज़त
तस्लीम - पहचान
गाम - क़दम
क़बल - पहले
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