ग़ैर मुन्तज़िर बारिश की तरह, शाम
ढले भिगो जाता है कोई दिल
की दुनिया, महक उठते
हैं सभी वीरां गोशे
ज़िन्दगी के,
इक इंतज़ार ए ख़्वाब सा उभरता है -
मखमली अँधेरे में दूर तक,
कोई चुपके से दीया
जला जाता हो -
माबद
ए क़दीम में जैसे, तेरी झुकी निगाह में
रुकी रहती हैं मेरी सांसें, हथेली
में बंद जुगनू की मानिंद,
बिखरने को बेताब
इश्क़ ए जुनूं
मेरा - -
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
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ग़ैर मुन्तज़िर - अप्रत्याशित
वीरां गोशे - वीरान कोने
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