19 अक्तूबर, 2012

शाम ढले - -

ग़ैर मुन्तज़िर बारिश की तरह, शाम 
ढले भिगो जाता है कोई दिल 
की दुनिया, महक उठते 
हैं सभी वीरां गोशे
ज़िन्दगी के, 
इक इंतज़ार ए ख़्वाब सा उभरता है -
मखमली अँधेरे में दूर तक,
कोई चुपके से दीया
जला जाता हो -
माबद 
ए क़दीम में जैसे, तेरी झुकी निगाह में 
रुकी रहती हैं मेरी सांसें, हथेली 
में बंद जुगनू की मानिंद, 
बिखरने को बेताब
इश्क़ ए जुनूं
मेरा - -

- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
ग़ैर मुन्तज़िर - अप्रत्याशित 
वीरां गोशे - वीरान कोने 
माबद ए क़दीम - प्राचीन मंदिर 
इश्क़ ए जुनूं - प्रेम की आसक्ति 
midnight-splendor by Rick Lawrence

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