मुन्नवर किस नूर से है दिल की ज़मीं
कौन दे गया अचानक, तजदीद
हयात आज की रात, फिर
लौट आ रही हैं खोयी
हुई सदाएं ! न
जाने
कौन रख गया दहलीज़ पर गुल -
शबाना, महक चले हैं दिल
ओ ज़मीर बातरतीब,
फिर ज़िन्दगी में
है ताज़गी
रवां !
फिर करवटें लेता मेरा रूठा नसीब !
फिर सुबह उभरने को है
बेताब, कोई है खड़ा
उफ़क़ के बहोत
क़रीब, ले
हाथों
में रौशनी बेशुमार, फिर आने को है
बहार - -
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
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मुन्नवर - रौशन
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