वो सरुर जो तेरी नज़र से छलके, छू जाए
कभी अनजाने यूँही मेरी ज़िन्दगी को,
हूँ आज भी लिए दिल में सबर
बेइन्तहा, दे जाए कोई
नूर ए उम्मीद इस
ग़म अफज़ा
ज़िन्दगी को, वो रुकी रुकी सी बात, जो -
लब तलक आ के, ख़ामोश बिखर
जाए अक्सर, कभी तो खुले
राज़ ए उल्फ़त गुमशुदा,
इक बूंद तो मिले,
प्यासी मेरी
ज़िन्दगी को - -
- शांतनु सान्याल
सरुर - ख़ुशी
सबर बेइन्तहा - अंतहीन धैर्य
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