14 अक्टूबर, 2012

सबर बेइन्तहा - -

वो सरुर जो तेरी नज़र से छलके, छू जाए

कभी अनजाने यूँही मेरी ज़िन्दगी को, 
हूँ आज भी लिए दिल में सबर 
बेइन्तहा, दे जाए कोई
नूर ए उम्मीद इस 
ग़म अफज़ा 
ज़िन्दगी को, वो रुकी रुकी सी बात, जो -
लब तलक आ के, ख़ामोश बिखर 
जाए अक्सर, कभी तो खुले 
राज़ ए उल्फ़त गुमशुदा,
इक बूंद तो मिले,
प्यासी मेरी 
ज़िन्दगी को - - 

- शांतनु सान्याल

सरुर - ख़ुशी 
 सबर  बेइन्तहा - अंतहीन धैर्य


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