शाम ए चिराग़ जले हैं अभी अभी, न देख यूँ
डूबती नज़रों से, कहीं मिस्बाह हयात
बुझ न जाए, सितारों की बज़्म है
अभी तलक बिखरी बिखरी,
जलसा ए नजूम में
कहीं मेरा इश्क़
गुम हो न
जाए,
फिज़ाओं में है इक अजीब सा ख़लूस छाया
हुआ, हर सिम्त जैसे उठ चले हों
धुंध आतफ़ी, न कर रुसवा
मासूम दिल को इस
क़दर कि नाबद
हसरत कहीं
ढह न
जाए, बड़ी मुश्किल से हैं मिले किश्तियों को
किनारे, इस बेरुख़ी से कहीं नाज़ुक
जज़्बात बह न जाए - -
- शांतनु सान्याल
मिस्बाह हयात - चिराग़ ज़िन्दगी
बज़्म - महफ़िल
जलसा ए नजूम - सितारों का जमाव
ख़लूस - शुद्धता
आतफ़ी - जज़्बाती
नाबद - मंदिर
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thanks respected friend
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट:-
करुण पुकार
thanks a lot respected friend
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