21 मार्च, 2012

उठालो अहद दोबारा 

अजीब सी है दीवानगी किसी मोड़ पे रूकती ही नहीं,
आवारापन और ये परछाई कभी वो मुझ से
आगे और कभी ज़िन्दगी है हैराँ खड़ी
मेरे सामने, वो फ़सील जो
ढह गया  बुझ कर,
ज़माना हुआ,
कौनसी
आंच लिए जिगर में भटकती हैं, फिर  तुम्हारी -
मुहोब्बत, पिघल कर, धुएं में उड़ गए
मोम से जज़्बात, अब शमा की
दुहाई लाज़िम नहीं,  हो
सके तो चुन लो
आसमां के
आंसू,
सुलगते दामन में बेक़रार से हैं हसरतों की कलियाँ,
भीग जाएँ दोबारा मुरझाये जुस्तजू, कि
सूरज निकलने में ज़रा वक़्त है
बाक़ी, उठा भी लो फिर
मुस्कराने का
अहद,
ज़िन्दगी टूट कर पुकारती है  तुम्हें बार बार - - -

- शांतनु सान्याल 
अहद -commitment 
फ़सील - firewall 

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