रेखांकित पंक्ति से कभी बाहर निकल कर
तो देखें, हाशिये में भी कुछ सांसों के
शब्द हैं जीवित, हस्तलिपि
उसकी ठीक नहीं तो
क्या, कभी
हथेली पर बिखरे रेखाओं को जोड़ कर तो
देखें, उस कोने पर जो गुमसुम सा,
एकाकी बैठा हुआ है शिशु,
कभी समय मिले तो
उसे पुचकारें,
सर पर
ज़रा हाथ फिरा के तो देखें, जीवन का प्रति -
बिम्ब है अधूरा, अहाते में बिखरे हुए
फूलों को पुष्पदान में सजा के
तो देखें, आत्मीयता की
परिभाषा जो भी हो,
कभी किसी
दिन के लिए ग़ैरों को भी अपना बना के तो
देखें - - -
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