तन मन रंग डारी उसने -
वो शाश्वत स्पर्श, सजा गया इन्द्रधनुषी संवेदना,
अकस्मात् झंकृत, ज्यों सुप्त जीवन के सरगम,
कहीं आँचल, कहीं काजल , होश नहीं कहाँ हैं हम,
पूछते हैं, ख़ुद से ख़ुद का ही खोया हुआ ठिकाना,
जमुना बहे कि प्रणय नीर मुश्किल है, उभर आना,
कदम्ब डार या बाहों का हार, हर ओर उड़े गुलाल,
तन छुए तो मन अकुलाय, कैसा है ये मायाजाल,
जवाब देंहटाएं♥*♥
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आदरणीय शांतनु सान्याल जी
सस्नेहाभिवादन !
बहुत सुंदर रचना है …
आपके ब्लॉग पर बहुत ख़ूबसूरत रंग बिखरे-भरे-पड़े हैं विविध रचनाओं के रूप में
आभार !
हार्दिक शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
मन की गहराइयों से धन्यवाद, नमन सह
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग का अवलोकन ज़रूर करूँगा, ये मेरे लिए हर्ष की बात होगी, नमन सह
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