परिचयहीन
बहाने सही, स्वयं को पहचानने
का तो अवसर मिला, मैं
चाह कर भी उसे
भूला न
सका, वो चाह कर भी मेरे समीप आ न
सका, इस नीरवता में थे न जाने
कितने भावनाएं समाधिस्थ,
द्वार तक पग बढे थे
लेकिन पा कर
भी उसे
पा न सका, गंतव्य था मेरे सामने बांह
फैलाए, क़दम उठने से पहले
ढह गए सभी ताश के
घर सहसा, हाथ
बढे
लेकिन छलकता जाम उठा न सका, फिर
जीत गए तुम नियति के साथ,
अप्रत्याशित भू कम्पन,
उस मोड़ तक मैं
जा न सका,
पा के
भी तुम्हें पा न सका, अपना परिचय बता न
सका.
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
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Art Quiet Pond by Robert Kuhn
भावों की लाजवाब उड़ान ..
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