मोक्ष की प्राप्ति
राज सिंहासन, सिर्फ़ चाहा था परिचय -
पत्र की वापसी, जो हुतात्माओं
की थी धरोहर, लहू में
अंकित वो शपथ
पत्र जिसमे
थे वचनबद्ध, सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु -
निरामयः की भावना, न जाने कहाँ
गए वो पृष्ठ जिनकी पंक्तियों
में सुलगते थे, मानवता
के अखंडित लौ,
वो कल्प
वृक्ष जिसकी शाखाओं में उगते थे देश प्रेम के
कोंपल, वो भव्य बरगदी वात्सल्य जो
समेट ले अपनी छाया में सभी
को समरसता के साथ,
न जाने कहाँ
गयीं वो
संवेदनाएं जो कभी बहती थी ह्रदय मध्य, अब
तो सांस भी लेनी हो तो लेनी होगी
भ्रष्ट शासकों से अनुमति,
अपना मृत देह लिए
फिर मैं खड़ा
हूँ उसी
मणिकर्णिका घाट पर दोबारा कोई तो आगे
बढे, करे मुझे श्मशान शुल्क से
मुक्त कि चाहती है मेरी
आत्मा इस पवित्र
भूमि में
दोबारा मोक्ष प्राप्ति - - -
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
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Sun Rising in Fog
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