जन अरण्य की ओर
जाती है सांत्वना, अनजान सी एक
दस्तक रख जाती है पुष्प -
गुच्छ दरवाज़े के
समीप,
कोई दे जाता है धीरे से सुरभित अनुबंध, फिर
जीवन है अग्रसर छूने को प्रतिबद्धता,
फिर ह्रदय करता है अंगीकार
भूल कर विगत सभी
दुःस्वप्न, भोर
की तरुण
किरणें, भीगे पंखुड़ियों का हौले हौले खुलना -
निसर्ग भर चला हो जैसे पुरातन घाव,
कोई अदृश्य स्वर में फिर गा
चला है प्रभाती राग, दे
रहा हो ज्यों
आह्वान,
जीवन संघर्ष के लिए फिर व्यक्तित्व है तैयार.
- शांतनु सान्याल
painting morning sunlight-watercolor by Sergey Zhiboedov