कोहरा ए फ़जर थी उसकी चाहत, भटकता
रहा उम्र भर, कभी बनके शबनमी बूंदें
वो टपकता रहा दिल में, नाज़ुक
बर्ग की मानिंद, जज़्बात
लरज़ते रहे बारहा,
कभी ग़ाफ़िल
कभी
मेहरबां ज़रूरत से ज़ियादा, तखैल से परे
है उसकी ख़तीर मुहोब्बत, हर क़दम
इक तूफ़ान ग़ैर मुंतज़िर, हर
लम्हा नादीद क़यामत,
हर साँस नयी
ज़िन्दगी !
अमकां हर पल जां से गुज़र जाने की ज़िद !
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
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फ़जर - भोर
बर्ग - पत्ता
बर्ग - पत्ता
ग़ाफ़िल - बेपरवाह
तखैल - कल्पना
ख़तीर - ख़तरनाक
ख़तीर - ख़तरनाक
मुंतज़िर - प्रत्याशित
बहुत खूबसूरत अंदाज
जवाब देंहटाएंजरा हट के !
वाह ... बेहतरीन
जवाब देंहटाएंअसीम धन्यवाद सभी सम्मानित मित्र - -
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