उस अथाह गहराई तक उतरना चाहूंगा, जहां
लफ़्ज़ों का तिलिस्म थक जाए, एक
एहसास जो ख़ामोश रह कर
भी दिल की परतों को
खोल दे, जो आज
तक कोई न
कह सका
वो बात
सरे आम बेझिझक सभी से बोल दे, मैं न - -
चाह कर भी आज, इस पल, तुम से
क्षमा चाहता हूँ ताकि तुम्हारे
दिल में नफ़रतों का
उठता हुआ
बवंडर
रुक
जाए, उस अथाह गहराई तक उतरना चाहूंगा,
जहां लफ़्ज़ों का तिलिस्म थक जाए।
तुकबंदियों से कहीं मीलों दूर हैं,
संवेदनाओं की दुनिया,
कुछ जुगनुओं की
टिमटिमाहट
में खेलते
हैं अर्द्ध
नग्न बच्चे, मासूम सीने के पृष्ठों में, कहीं - -
आबाद हैं मानव बस्तियां, टूटते ख़्वाबों
से कोई कह दे कि बिखरने से पहले,
नम पलकों पर इक शबनमी
फ़ाया रख जाए, उस
अथाह गहराई
तक उतरना
चाहूंगा,
जहां
लफ़्ज़ों का तिलिस्म थक जाए। चाँद के अक्स
से पेट की भूख नहीं थमती, ख़ुदा के लिए
झुलसा हुआ ख़्वाब न दिखाए कोई,
ख़ाली मर्तबानों में हैं बंद,
छतों की नरम धूप,
अर्थहीन है इस
पल चाहतों
को पुनः
सेंकना,
शब्दों के खेल से यूँ बारहा दिल को न बहलाए
कोई, मुझे नहीं चाहिए तुम्हारा राहतों
का झूठा ख़त, नामावर से जा कहे
कोई, दहलीज़ पे ही वो रुक जाए,
उस अथाह गहराई तक
उतरना चाहूंगा,
जहां लफ़्ज़ों
का
तिलिस्म थक जाए - -
* *
- - शांतनु सान्याल
09 अगस्त, 2022
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 10 अगस्त 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
>>>>>>><<<<<<<
पुन: भेंट होगी...
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (१०-०८ -२०२२ ) को 'हल्की-सी सीलन'( चर्चा अंक-४५१७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
वाह! बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएं