11 अगस्त, 2022

रूपांतरण - -

एक पगडंडी झाड़ियों से ढकी हुई, जाती है
बहुत दूर, छुपते छुपाते, उस जगह
जहाँ पर उतरती है सुरमयी
शाम, ऊँचे ऊँचे पेड़
की परछाइयां,
सहसा
जी
उठते हैं एक दूसरे को छूने के लिए, उन - -
निस्तब्ध पलों में हमारे दरमियां,
दस्तक देते हैं जल प्रपात
की रहस्यमयी कुछ
सरगोशियां,
धूसर
पर्वतों में दिन का सफ़र होता है तमाम,
उस जगह पर हमारे सिवा कोई
नहीं होता, जहाँ पर उतरती
है सुरमयी शाम। उन
निझुम पलों में
ज़िन्दगी
छूना
चाहती है प्रणयी अन्तःस्थल, ईशान - -
कोण में उभरते हैं धीरे धीरे कुछ
मेघ दल, हवाओं के साथ
उड़ आते हैं हज़ार
ख़्वाहिशों के
चिरहरित
जंगल,
कुछ ख़्वाबों के कोष खुलने को होते हैं
तब बेक़रार, रेशमी गुच्छों से
उभर कर रात करती है
तब ज़िन्दगी का
स्वागत, जिस्म
को मिलता
उन पलों
में इक
पुरसुकूं आराम, तितलियों के नाज़ुक
परों पर लिखा होता है कहीं
तुम्हारा मधुर नाम !
* *
- - शांतनु सान्याल
















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