ख़्वाहिशों का यूँ भी कोई किनारा नहीं होता,
इक बेमौज नदी है, कोई बेसदा बहती हुई -
डूबनेवाले का यहाँ कोई भी सहारा नहीं होता।
जब आग लगी हो सारे शहर में बेलगाम - -
तब अपने - ग़ैर में कोई बँटवारा नहीं होता।
बहुत मुश्किल से बनते हैं, घरौंदे मेरे दोस्त -
अपनी मर्ज़ी से कोई यूँ ही बंजारा नहीं होता।
सिर्फ़ समझ का है उलटफेर, ऐ ईमानवालों !
हरगिज ख़ुदा, हमारा या तुम्हारा नहीं होता।
बज़्म -ए -ज़िन्दगी की है अपनी ही चाँद रात,
हर टूटनेवाला क़तरा नामी सितारा नहीं होता।
* *
- शांतनु सान्याल
इक बेमौज नदी है, कोई बेसदा बहती हुई -
डूबनेवाले का यहाँ कोई भी सहारा नहीं होता।
जब आग लगी हो सारे शहर में बेलगाम - -
तब अपने - ग़ैर में कोई बँटवारा नहीं होता।
बहुत मुश्किल से बनते हैं, घरौंदे मेरे दोस्त -
अपनी मर्ज़ी से कोई यूँ ही बंजारा नहीं होता।
सिर्फ़ समझ का है उलटफेर, ऐ ईमानवालों !
हरगिज ख़ुदा, हमारा या तुम्हारा नहीं होता।
बज़्म -ए -ज़िन्दगी की है अपनी ही चाँद रात,
हर टूटनेवाला क़तरा नामी सितारा नहीं होता।
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- शांतनु सान्याल
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