26 जून, 2012


फिर दोबारा 
उठे फिर कहीं से यकायक, लापता  तूफां 
फिर बरसें  टूटकर, बादलों के साए,
फिर निगाहों में तेरी चाहत 
फिर ज़िन्दगी चाहती 
है क़तरा क़तरा 
बिखरना, 
फिर बहे संदली हवाएं, फिर फिज़ाओं में 
हो पुरअशर ताज़गी, फिर धनक 
से छलकें रंगीन जज़्बात,
फिर इक बार दिल 
चाहता है यूँ 
संवरना
कि जीने के मानी हों *लाज़वाल - - - 
- शांतनु सान्याल  
painting by Theo Dapore

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