25 जून, 2012

नज़्म


तीर ओ कमान; जो भी था पास उसके -
आज़मा  लिए उसने, दिल ऐ
*गज़ाल लेकिन कर न 
सका बस में कोई,
मजरूह मेरे
जज़्बात
हैं तैयार, हर इक  इम्तहां से गुजरने को, 
वो परेशां सा है आजकल, मुझसे 
मिलने के बाद, कि शिकारी 
ख़ुद हो चला हो जैसे 
शिकार, अपने 
ही फैलाए 
जाल में, 
मुझे फ़ुरसत नहीं मिलती जो करूँ उसे 
उससे  ही आज़ाद, फिर कभी 
सोचेंगे, जाएँ या न जाएँ 
उसके दिल के 
पास - - 
- शांतनु सान्याल 
* गज़ाल (अरबी) - हिरण

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