पुराना आईना
वो हदे नज़र नहीं, लेकिन छू जाय है; दिल की
गहराई, ये कैसा भरम मेरा; चल रहा हूँ
ज़मीं पर; और आसमां छू रही
मेरी परछाई, न चाँद, न
सितारे, न ही कोई
आकाशगंगा,
फिर भी है जिस्मो जां रौशन, न जाने कौन
पिछले पहर भर गया; ख़ुश्बुओं से मेरी
तन्हाई, लिख गया ज़िन्दगी के
रिक्त पृष्ठों पर नयी
कहानी, ये फिज़ा;
ये सुबह; सभी
तो थे
रोज़ मौजूद, फिर क्यूँ पूछता है; मेरा नाम
आईना पुराना - -
bahut sundar post
जवाब देंहटाएंthanks all respected friends - love and regards
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