कल रात कोई
वो सभी इलज़ाम बहोत ख़ूबसूरत लगे -
जो उसने लगाये थे मुझ पर, यूँ
भी ज़िन्दगी में इनामों की
कमी न थी, इक और
नायाब नगीना
जड़ गया
कोई,
दाग़े दिल लिए फिरता हूँ मैं उसकी गली
में अकसर, बदहवास सा कुछ कुछ,
सुना है ; टूटे दहलीज़ पर कल
शब, भीगा गुलाब
रख गया
कोई,