तारों भरा ये शामियाना, रात सजी दुल्हन -
ज़िन्दगी चाहे निज़ात, फिर वही चिर दहन,
नदी से उठे धुंआ, बेचैन क़श्ती, रूह बेक़रार
डूबती उभरती लहरें,फिर वही अधीर थकन,
रुके ज़रूर वादियों में, मुड़ के देखा भी हमें -
न बढे क़दम, घेरती रही यूँ दिल की उलझन,
कोई साया अंधेरों में भटकता रहा रात भर -
बंद दरवाज़े, दस्तक न दे सका, ये मेरा मन,
वीरां सड़कों से कौन गुज़रा लहूलुहान पांव
जिस्म पे बिखरे दाग़, अनबुझ है वो जलन,
ख़ुद को समेटता हूँ, मैं मुसलसल ज़िन्दगी
क्या हुआ कि वो तमाम मस्सरतें हैं, रेहन
सुबह की रौशनी में न देख यूँ ज़माना मुझे
मीलों लम्बी तीरगी से चुरा लाया हूँ ये बदन,
वाह बहुत ही सुन्दर दर्दभरी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंthanks vandana di love and regards with respect
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