भीगते काग़ज़ के नाव रुक चले हों
शायद दिल के आँगन में कहीं -
तुमने छुआ है,अभी अभी जज़बात
इक सिहरन सी जगी लहरों में -
कहीं, बह चले फिर भीगे अल्फाज़,
नन्हें हाथों के वो मिट्टी के बाँध
फिर दे चलें, मासूमियत से आवाज़,
न करो बंद हथेली, बेक़रार बूंदें -
हैं मुद्दत से बिखरने को यूँ भी बेताब,
कहाँ रख आये हँसी के मर्तबान
खोल भी दो तमाम बंद रोशनदान,
किश्तों में मुस्कराने की अदा न
कर जाये कहीं ये ज़िन्दगी ही बर्बाद,
-- शांतनु सान्याल
शायद दिल के आँगन में कहीं -
तुमने छुआ है,अभी अभी जज़बात
इक सिहरन सी जगी लहरों में -
कहीं, बह चले फिर भीगे अल्फाज़,
नन्हें हाथों के वो मिट्टी के बाँध
फिर दे चलें, मासूमियत से आवाज़,
न करो बंद हथेली, बेक़रार बूंदें -
हैं मुद्दत से बिखरने को यूँ भी बेताब,
कहाँ रख आये हँसी के मर्तबान
खोल भी दो तमाम बंद रोशनदान,
किश्तों में मुस्कराने की अदा न
कर जाये कहीं ये ज़िन्दगी ही बर्बाद,
-- शांतनु सान्याल
किश्तों में मुस्कराने की अदा न
जवाब देंहटाएंकर जाये कहीं ये ज़िन्दगी ही बर्बाद,
waah kya khyaal hai !
सुन्दर ख्याल्।
जवाब देंहटाएंप्रिय रश्मि जी व वंदना जी, दिल की अथाह गहराइयों से शुक्रिया, सस्नेह
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