02 मार्च, 2011

मधुमास की छुअन

मधुमास की छुअन
वो ख़ूबसूरत इत्र की शीशी अब भी
   हमने रखी है, बहुत ही सहेज के -
सुगंध है ओझल, अहसास बाक़ी !
  जी चाहे अक्सर की सजा दूँ तुम्हें
फिर मौसमी फूलों से, दायरे हैं -
  सिमटे,ज़ख़्म के गुच्छे हैं वज़नी,
झुक सी जातीं हैं निगाहें कहीं पे
  जा कर, ये आग की लपटें हैं या -
फिर सुलगती हैं, अनबुझी यादें,
   कौन है,न जाने शाम ढलते -
सजा जाता है आहिस्ते ख़ामोशी,
   दूर तलक फिर खिले हैं बुरुंस
पहाड़ी में फिर लगे हैं शायद
  जुगनुओं के मेले, झरनों में हैं
बहती मधुमास की छुअन धीमे धीमे,
--- शांतनु सान्याल

مدھماس  کی چھوون 
 خوبصورت  عطر  کی  شیشی 
  ہمنے  رکھی  ہے ،  بہت  ہی  سہیج  کر -
سگندہ  ہے  اوجھل ، احساس  باقی
جی  چاہے   اقسر  کی  سجا  دوں  تمہیں
پھر  موسمی  پھولوں  سے ، دایرے  ہیں   
سمٹے ، زخم  کے  گچچھے  ہیں  وزنی 
جھک  سی  سی  جاتیں  ہیں  نغاہیںکہیں پے
جا  کر ، یہ  آگ  کی  لپٹیں  ہیں  یا   
پھر سلگتی  ہیں ، انبجھی  یادیں
کون  ہے  نہ  جانے  شام  ڈھلتے
سجا  جاتا  ہے  آھستے  خاموشی  
دور  تک  پھر  کھلے  ہیں  برنس
جگنوؤں  کے میلے ،  جھرنوں  میں  ہیں
بہتی  مدھماس  کی چھن  دھیمے  دھیمے
شانتانو  سانیال - 
  


    

    

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past