मधुमास की छुअन
वो ख़ूबसूरत इत्र की शीशी अब भी
हमने रखी है, बहुत ही सहेज के -
सुगंध है ओझल, अहसास बाक़ी !
जी चाहे अक्सर की सजा दूँ तुम्हें
फिर मौसमी फूलों से, दायरे हैं -
सिमटे,ज़ख़्म के गुच्छे हैं वज़नी,
झुक सी जातीं हैं निगाहें कहीं पे
जा कर, ये आग की लपटें हैं या -
फिर सुलगती हैं, अनबुझी यादें,
कौन है,न जाने शाम ढलते -
सजा जाता है आहिस्ते ख़ामोशी,
दूर तलक फिर खिले हैं बुरुंस
पहाड़ी में फिर लगे हैं शायद
जुगनुओं के मेले, झरनों में हैं
बहती मधुमास की छुअन धीमे धीमे,
--- शांतनु सान्याल
वो ख़ूबसूरत इत्र की शीशी अब भी
हमने रखी है, बहुत ही सहेज के -
सुगंध है ओझल, अहसास बाक़ी !
जी चाहे अक्सर की सजा दूँ तुम्हें
फिर मौसमी फूलों से, दायरे हैं -
सिमटे,ज़ख़्म के गुच्छे हैं वज़नी,
झुक सी जातीं हैं निगाहें कहीं पे
जा कर, ये आग की लपटें हैं या -
फिर सुलगती हैं, अनबुझी यादें,
कौन है,न जाने शाम ढलते -
सजा जाता है आहिस्ते ख़ामोशी,
दूर तलक फिर खिले हैं बुरुंस
पहाड़ी में फिर लगे हैं शायद
जुगनुओं के मेले, झरनों में हैं
बहती मधुमास की छुअन धीमे धीमे,
--- शांतनु सान्याल
مدھماس کی چھوون
خوبصورت عطر کی شیشی
ہمنے رکھی ہے ، بہت ہی سہیج کر - سگندہ ہے اوجھل ، احساس باقی
جی چاہے اقسر کی سجا دوں تمہیں
پھر موسمی پھولوں سے ، دایرے ہیں
پھر موسمی پھولوں سے ، دایرے ہیں
سمٹے ، زخم کے گچچھے ہیں وزنی
جھک سی سی جاتیں ہیں نغاہیںکہیں پے
جا کر ، یہ آگ کی لپٹیں ہیں یا
جا کر ، یہ آگ کی لپٹیں ہیں یا
پھر سلگتی ہیں ، انبجھی یادیں
کون ہے نہ جانے شام ڈھلتے
سجا جاتا ہے آھستے خاموشی
سجا جاتا ہے آھستے خاموشی
دور تک پھر کھلے ہیں برنس
جگنوؤں کے میلے ، جھرنوں میں ہیں
جگنوؤں کے میلے ، جھرنوں میں ہیں
بہتی مدھماس کی چھن دھیمے دھیمے
شانتانو سانیال -
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