न जाने कौन थे वो लोग जो पत्थरों में
आग से लिख गए अनगिनत जिवंत कविताएं
आज भी पठारों में खिलते हैं झरबेरी
हल्की बूंदों से भी भरती हैं मृत मरू सरिताएं
जाने क्या बात थी उनमें की गूंजती हैं
आवाज़ें, मंदिर कलश को छुएं अतृप्त भावनाएं
कुछ तो रहस्य था उनकी इस आत्मीयता में
वो हर पल हर डगर उम्मीदों की अलख जगाएं
नदी घाटों में वृन्द आरती गढ़े अलौकिक -
अनुभूति, चहुँ दिशा निसर्ग वैदिक ऋचा दोहराएँ.
--- शांतनु सान्याल
सही कहा अपने जरुर कुछ ना कुछ तो रहस्य रहा होगा , बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,बधाई
जवाब देंहटाएं