टूटतीं लहरों में जीने की उम्मीद बंधे
अभी तो डूबा है, सूरज सागर पार
शाम के धुंधलके में सांस लेतीं हैं -
अनकही बातें, कैसे कहूँ तुमसे वो
दर्दे बेक़रां, कांप से जाते हैं ओंठ
सहम सी जाती हैं जां, पत्तों की
ये सरसराहट है, या टूट टूट जाये
कोमल शाखों से अरमानों के ओस,
ये समंदर भी क्या चीज़ है, तकता
हूँ, मैं बड़ी हसरत से प्यास लिए -
इक बूंद में जैसे ज़िन्दगी हो शामिल,
उसे बरसना ही नहीं जब क्या कीजे
ये अँधेरा है, या कोई बादलों का साया
छू तो जाए सारा बदन हवाओं की तरह
दिल ही छुट जाए तो कीजे।
--- शांतनु सान्याल
हूँ, मैं बड़ी हसरत से प्यास लिए -
जवाब देंहटाएंइक बूंद में जैसे ज़िन्दगी हो शामिल,
उसे बरसना ही नहीं जब क्या कीजे
खुबसूरत अहसास ,अच्छी नज्म मुबारक हो..
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 08-03 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
thanks - sunil kumar ji - naman
जवाब देंहटाएंthanks - sunil kumar ji - naman sah
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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