ये वही शख्स है जिसने दी थीं झूठी गवाहियाँ
ये वही रक़ीब है मेरा जो रहा मुद्दतों बनके रहनुमां
न पूछो हस्र ए मुहोब्बत, ऐ डूबते सितारों मुझसे
ये वही ज़मीं है मेरी और मुस्कराता वही आसमाँ
लिपटा रहा आस्तींसे ताउम्र नफ्से दोस्त बनकर
ये वही जगह है, कभी रौशन था मेरा भी आशियाँ !
वो जो कहते थे कि हूँ मैं मिशाले हुस्न बेपनाह
वही आईना है वही चेहरा मेरा और ये छाइयाँ.
कभी कोई मंदिर हुआ करता था यहीं कहीं क़रीब
आज बाज़ारे जिस्त में रहती हैं मशहूर हस्तियाँ.
न जाने कौन सी शै थी जो ले गई काजल चुराकर
ये वही उदास आँखें तकतीं हैं खुद की परछाइयां .
यहीं कहीं से उठा था धूल का बवंडर बहुत ऊपर
ये वही है फ़िज़ा वही रास्ते वही बिखरता कारवां.
यहीं आसपास ख्वाबों ने ली थी कभी आखरी साँसें
हदे नज़र शायद यहीं कहीं हो रौशन मज़ारे बागबां.
वो दहकते मशालों वाले हाथ वही हिकारत की नज़र
अब भी छलते हैं वो ज़िन्दगी, आंसू व् तनहाइयाँ.
कौन गुज़रा है टपकते खून भरे क़दमों से यहाँ
फिसलन भरी है क्यूँ दर्द की ये राहे मेहरबानियाँ.
मैं उठा तो लूँ तीरों कमान, अहदे वफ़ा फिरसे
चाहत के सफ़र में लेकिन कम नहीं हैं दुस्वारियां.
सरकते पर्दों से झांकती हैं क़हर भरी निगाहें
राख़ के बादिलों में भी क्या होती हैं बिजलियाँ.
बरसने की ख्वाहिश लिए जागता रहा उम्र भर मैं
क्यूँ फिर नहीं सुलगतीं ये खामोश सूखी वादियाँ.
--- शांतनु सान्याल
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